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समय के इस प्रवाह में

1 min readJun 5, 2024

समय के इस प्रवाह में, तू कौन है मैं कौन हूँ,
अपार कर्म की राह में, तू कौन है मैं कौन हूँ ।।

दशकों की इस राह में, चला था सबको साथ ले,
उस बुद्ध की तलाश में, चला हूँ जल को काटने ।।

गुरुओं के समाज में, ज्ञान को चला था साधने,
तपस्वियों सा धैर्य ले, करता हूँ कर्मयज्ञ मैं ।।

कहीं तो गालव हो, तुम्हारी भी वो चाह हो,
मार्ग मेरा साधना, समय को वश में बांधना ।।

मेरे राष्ट्र का सम्मान हो, उज्ज्वल ये वर्तमान हो,
मात्र इतना ही स्वप्न हो, न कोई भी विघ्न हो ।।

कब आये ऐसा कल कभी? आश्वस्थ होंगे जब सभी,
तुझे ही लाना है वो कल, व्यर्थ करने को नहीं है पल ।।

उठ खड़ा हो रहा मैं अब, जाने फिर रुकूंगा कब,
मात्र ये अंतराल है, ये भी समय की चाल है ।।

समय के इस प्रवाह में, तू कौन है मैं कौन हूँ,
अपार कर्म की राह में, तू कौन है मैं कौन हूँ ।।

— कवि शैलेन्द्र

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Shailendra Malik
Shailendra Malik

Written by Shailendra Malik

An IT Professional with 21 years of experience in Banking (15 years) and Telecom (6 years) domains expertise. I write about my take on every day events.

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